मिथिला के महिषी गांव के उग्रतारा मंदिर की महिमा। Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila

मिथिला के महिषी गांव के उग्रतारा मंदिर की महिमा

Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila
मिथिला का एक ऐसा गाँव, जो हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच सामंजस्य और साझेदारी का प्रतीक है। इस गाँव में उग्रतारा मंदिर है, जो काली के रूप में पूजा जाता है। श्री उग्रतारा मंदिर सहरसा के महिषी प्रखंड के महिषी गांव ( Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila) में सहरसा स्टेशन के करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित है। इस प्राचीन (Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila) मंदिर में, भगवती तारा की मूर्ति बहुत पुरानी है और दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करती है।

The Glory of the Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila

बिहार के सहरसा जिले में स्थित एक प्रमुख शक्तिस्थल महिषी में स्थित उग्रतारा स्थान प्रसिद्ध है, जहाँ मान्यता है कि आदिशंकराचार्य के शास्त्रार्थ में उन्हें शंकराचार्य को पराजित होना पड़ा था। इस स्थल से 16 किलोमीटर दूर एक प्रमुख शक्ति स्थल है, जहाँ नवरात्रि के दिनों में और प्रति सप्ताह मंगलवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ आती है।

महिषी गांव में वर्तमान मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में दरभंगा के राजपरिवार की महारानी पद्मावती ने करवाया था। शक्ति पुराण के अनुसार महामाया सती के मृत शरीर को लेकर शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड में घूम रहे थे। इससे होने वाले प्रलय की आशंका को देखते हुए विष्णु द्वारा महामाया की मृत्यु शरीर को अपने सुदर्शन से 52 भागों में कर दिया गया था। सती के शरीर का जो हिस्सा यहां गिरा, उसे सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्धि मिली। ऐसी मान्यता है कि सती का बायां नेत्र भाग यहाँ गिरा था।

मां उग्रतारा की प्रतिमा कई स्वरूप के दर्शन


यहां के सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में मान्यता है कि उग्रतारा की प्रतिमा कई स्वरूप में देखने को मिलती है भक्ति बताते हैं कि यहां की प्रतिमा सुबह में अलसाई, दोपहर में रौद्र तथा शाम को सौम्य स्वरूप में दिखती हैं। माता के इस तीनों रूपों का दर्शन भक्तों के लिए सुखद और फलदाई होता है।


मां उग्रतारा के स्थान की ख्याति देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैली है। यहां आस-पास के इलाके वह देश के अन्य राज्यों सहित नेपाल के भी श्रद्धालु पूजा करने आते हैं।  यूं तो यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का आवाजाही रहती है,  पर नवरात्रि के मौके पर बड़ी तादाद में श्रद्धालु यहाँ जुटते हैं।  नवरात्र में देश के अन्य हिस्सों से आकर तांत्रिक यहां तंत्र साधना करते हैं। नवरात्र की नवमी तिथि को यह दर्जनों भैंसे सहित सैकड़ों बकरे की बलि दी जाती है। अगर आप मां उग्रतारा के दर्शन के लिए जा रहे हैं तो वहां दर्शन करने के उपरांत जो वहां पर दही और पेड़ा मिलता है वह जरूर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

शारदीय नवरात्र में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग  द्वारा यहां भव्य उग्रतारा समारोह का प्रत्येक वर्ष आयोजन किया जाता है।  महोत्सव में देश के ख्याति प्राप्त कलाकार यहां आकर श्रोताओं का मनोरंजन करते हैं। 

मिथिला का महिषी गांव शाक्त संप्रदाय का एक मजबूत मठ

महिषी गांव में जहाँ वैष्णव संप्रदाय के भक्त भी रहते हैं, वहीं यहाँ के मंदिर में बौद्धों के धार्मिक स्थलों का भी स्मरण है। इस गाँव की संस्कृति समृद्ध और विविध है, जो धार्मिक समुदायों के मेलजोल का प्रतीक है।

मिथिला का महिषी गांव शाक्त संप्रदाय का एक मजबूत मठ है, जहां शाक्त परंपरा की झलक देखने को मिलती है। हिन्दू धर्म में कुछ पूजाओं में बलि भी दी जाती है, जिसमें गाँव के मुस्लिम भाई भी भागीदार होते हैं। इस प्रथा में कोई अनोखापन नहीं है, और यह धार्मिक सामंजस्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह साबित करता है कि धर्म और सांस्कृतिक समृद्धि का आधार विविधता और समन्वय है।

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मिथिला के महिषी गांव के उग्रतारा मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQ)

 

1. महिषी गांव में उग्रतारा मंदिर (Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila) का क्या महत्व है?

उग्रतारा मंदिर शक्तिपीठों में से एक है, जो हिंदू धर्म में दिव्य स्त्री पहलू का प्रतीक है। यह शक्ति, विशेषकर देवी काली के उपासकों के लिए बहुत महत्व रखता है।

2. मंदिर में पूजा के दौरान मुर्गा चढ़ाने की परंपरा क्यों है?

परंपरा में प्रार्थना के दौरान बलि के रूप में मुर्गे की पेशकश शामिल है, अनुष्ठान के लिए एक मुस्लिम की उपस्थिति आवश्यक है। ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम की उपस्थिति के बिना पूजा पूरा नहीं किया जा सकता है।

3. महिषी गांव का क्या ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है?

महिषी गांव मिथिला क्षेत्र के केंद्र के रूप में कार्यरत, इतिहास और लोककथाओं से भरा हुआ है। इसमें महत्वपूर्ण घटनाएं देखी गईं, जिनमें पंडित मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के बीच विद्वतापूर्ण प्रवचन भी शामिल था।

4. क्या महिषी गांव से जुड़े कोई उल्लेखनीय व्यक्ति हैं?

हाँ, महिषी गाँव लक्ष्मीनाथ गोसाई जैसे संतों के लिए प्रसिद्ध है और जैन धर्म में श्वेतांबर परंपरा के संस्थापक मल्लिनाथ का भी घर था।

5. अनुष्ठानों के दौरान हिंदू घरों में मुसलमानों की उपस्थिति महत्वपूर्ण क्यों है?

मिथिला के हिंदू घरों में, पूजा के दौरान पशु बलि देने के लिए मुसलमानों, जिन्हें मलेछ के नाम से जाना जाता है, की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। इस परंपरा की जड़ें ऐतिहासिक हैं और इसे देवी की प्रसन्नता का अभिन्न अंग माना जाता है।

6. अनुष्ठानिक बलिदान में शामिल मुसलमानों का क्या होता है?

अनुष्ठानिक बलिदान में शामिल मुसलमानों को परंपरा के हिस्से के रूप में नए कपड़े और दक्षिणा (पैसे) दिए जाते हैं। यह प्रथा विभिन्न धार्मिक समुदायों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व पर जोर देती है।

7. क्या (Ugratara Temple in the village of Mahishi, Mithila) में देवी के सामने मुर्गे की बलि देना एक अनोखी प्रथा है?

नहीं, देवी के सामने मुर्गे की बलि देना कोई अनोखी बात नहीं है और यह हिंदू धर्म में शाक्त परंपरा के वाममार्ग में एक परंपरा रही है।

8. महिषी गांव धार्मिक विवादों को सुलझाने में कैसे योगदान देता है?

धार्मिक ग्रंथों के हवाले से महिषी गांव की परंपराएं धार्मिक विवादों के समाधान के रूप में काम करती हैं, जो धार्मिक प्रथाओं में विविधता और सह-अस्तित्व के महत्व पर जोर देती हैं।

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