रतन टाटा: भारत के “रतन” को अंतिम विदाई

भारत के “रतन” को अंतिम विदाई

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9 अक्टूबर 2024 की रात, भारत ने अपने सबसे महान और प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक, रतन टाटा (Ratan Tata) को खो दिया। 86 वर्ष की आयु में रतन टाटा का मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया, जिससे पूरे देश और दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। रतन टाटा, जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और अपनी परोपकारी दृष्टि के लिए विश्वभर में पहचाने गए, अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। उनकी अंतिम विदाई ने न केवल बिजनेस जगत, बल्कि आम जनता के दिलों को भी झकझोर दिया। लाखों लोगों ने नम आंखों से भारत के इस “रतन” को विदाई दी।

अंतिम संस्कार: नम आंखों से विदाई

रतन टाटा (Ratan Tata) के पार्थिव शरीर को 10 अक्टूबर की शाम मुंबई के वर्ली शमशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए लाया गया, जहाँ उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी गई। भारतीय परंपराओं के अनुसार हिंदू रीति-रिवाजों के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। हालांकि, रतन टाटा का जन्म पारसी धर्म में हुआ था, लेकिन पारसी परंपराओं में बदलाव और उनके जीवन के विशेष संबंधों के कारण हिंदू रीति-रिवाजों से उनका अंतिम संस्कार किया गया।

पारसी रतन टाटा का हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार

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रतन टाटा (Ratan Tata) के अंतिम संस्कार को लेकर एक चर्चा हुई कि क्यों उनका अंतिम संस्कार पारसी परंपराओं के बजाय हिंदू रीति-रिवाज से किया गया। पारसी धर्म में मृत शरीर को गिद्धों को अर्पित करने की प्रथा होती है, जिसे ‘टावर ऑफ साइलेंस’ या दखमा कहा जाता है। परंतु कोरोना महामारी के बाद इस प्रथा पर रोक लग गई थी, जिसके कारण पारसी लोगों के अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव आया। यही कारण था कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया।

एक जीवन जो प्रेरणा से भरा था

रतन टाटा (Ratan Tata) का जीवन संघर्ष और उपलब्धियों की एक अद्वितीय मिसाल था। 28 दिसंबर 1937 को जन्मे रतन टाटा को टाटा समूह का नेतृत्व करने का मौका तब मिला जब कंपनी कठिन दौर से गुजर रही थी। उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और इसे एक वैश्विक व्यापारिक साम्राज्य में बदल दिया। उनकी लीडरशिप के दौरान, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी कंपनियों ने असाधारण प्रगति की।

अंतिम यात्रा और लाखों की विदाई

रतन टाटा (Ratan Tata) के अंतिम दर्शन के लिए मुंबई में एनसीपीए लॉन में उनका पार्थिव शरीर रखा गया था, जहां देश की प्रमुख हस्तियाँ और उद्योगपति उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। देशभर से लाखों लोग भी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए और नम आंखों से इस महान उद्योगपति को विदाई दी। मुंबई की सड़कों पर उनके लिए उमड़े जनसैलाब ने रतन टाटा के प्रति देश के लोगों के गहरे प्यार और सम्मान को बखूबी दर्शाया।

पशु-प्रेम और इंसानियत की मिसाल
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रतन टाटा न केवल उद्योग जगत में अपने योगदान के लिए जाने जाते थे, बल्कि उनकी इंसानियत और दयालुता के लिए भी सराहे जाते थे। उन्हें जानवरों, खासकर कुत्तों से विशेष लगाव था। उनकी अंतिम विदाई के समय भी उनका डॉग ‘गोवा’ श्रद्धांजलि देने के लिए मौजूद था, जिसने इस दृश्य को और भी भावुक बना दिया।

रतन टाटा (Ratan Tata) की विरासत

रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में न सिर्फ व्यापार जगत में बल्कि सामाजिक सेवा में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाज सुधार के क्षेत्र में अनेकों महत्वपूर्ण योगदान दिए। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने विश्वभर में परोपकार के कई प्रोजेक्ट्स चलाए, जिनका उद्देश्य समाज के निचले तबके के लोगों की मदद करना था।

रतन टाटा की यह विरासत हमें यह सिखाती है कि व्यापार सिर्फ मुनाफा कमाने का माध्यम नहीं है, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी एक तरीका हो सकता है। उन्होंने हमेशा सामाजिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी और अपने संसाधनों का उपयोग समाज की भलाई के लिए किया।

रतन टाटा का करियर: एक सादगीपूर्ण शुरुआत

यह बात जानकर आश्चर्य हो सकता है कि रतन टाटा की पहली नौकरी टाटा ग्रुप में नहीं थी। टाटा संस के पूर्व चेयरमैन और एक सफल उद्योगपति होने के बावजूद, उनका करियर एक साधारण और विनम्र शुरुआत से शुरू हुआ था। रतन टाटा ने अपनी पहली नौकरी के लिए खुद ही अपना रिज्यूमे टाइप किया था। यह सादगी और आत्मनिर्भरता उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था, जो उनकी पूरी यात्रा में दिखाई दी। एक बड़े व्यापारिक घराने से ताल्लुक रखने के बावजूद, उन्होंने अपने जीवन में हर कदम मेहनत, समर्पण और अनुशासन से उठाया।

टाटा समूह: पाकिस्तान की GDP से भी बड़ी संपत्ति

रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर अपार सफलता हासिल की। एक समय ऐसा आया जब टाटा समूह की कुल बाज़ार पूंजीकरण पाकिस्तान की पूरी GDP से अधिक हो गई। यह उपलब्धि न सिर्फ टाटा समूह की बढ़ती ताकत को दर्शाती है, बल्कि रतन टाटा के दूरदर्शी नेतृत्व और उनकी व्यावसायिक दृष्टि का परिणाम भी है। उन्होंने टाटा ग्रुप को न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में सम्मानित और विश्वसनीय ब्रांड बनाया।

खेल और संस्कृति में योगदान: IPL में BCCI का साथ

रतन टाटा केवल उद्योग जगत तक सीमित नहीं थे; उन्होंने खेल और संस्कृति के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) मुश्किल दौर से गुजर रहा था, रतन टाटा ने BCCI का साथ देकर इसे समर्थन दिया। यह सिर्फ व्यापारिक समर्थन नहीं था, बल्कि उनके समर्पण और खेल के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक था। उनके द्वारा उठाए गए कदमों ने आईपीएल को मजबूती दी और इसे आज के समय में विश्व के सबसे सफल खेल आयोजनों में से एक बना दिया।

नैनो कार: आम आदमी के सपने को साकार करना

रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो कार के रूप में सामने आया। यह एक सपना था जिसे उन्होंने आम भारतीय के लिए साकार किया। नैनो कार को भारत में सबसे किफायती कार बनाने के उद्देश्य से पेश किया गया था, ताकि हर भारतीय का कार का सपना पूरा हो सके। इस प्रोजेक्ट में उत्तराखंड का खास कनेक्शन था, क्योंकि टाटा मोटर्स का उत्पादन संयंत्र राज्य में स्थापित किया गया था। यह प्रोजेक्ट उनकी सादगी, सेवा और सामाजिक भलाई के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है।

रतन टाटा की अनोखी दोस्ती: शंतनु नायडू के साथ संबंध

रतन टाटा की दोस्ती भी उतनी ही खास थी जितना उनका व्यक्तित्व। उनकी सबसे चर्चित दोस्ती शंतनु नायडू नामक युवक के साथ थी, जो उनसे 55 साल छोटा था। शंतनु टाटा समूह में काम करते थे और उनके साथ काम करते-करते उनकी और रतन टाटा की दोस्ती गहरी हो गई। इस अनोखी दोस्ती की कहानी से यह पता चलता है कि उम्र के फ़ासले उनके रिश्तों में कभी बाधा नहीं बने और उन्होंने हमेशा युवाओं को आगे बढ़ाने में विश्वास किया।

रतन टाटा की संपत्ति और उनके वारिस

रतन टाटा की व्यक्तिगत संपत्ति हमेशा एक चर्चा का विषय रही है, लेकिन उनके लिए धन से ज़्यादा महत्वपूर्ण था सेवा और समाज कल्याण। हालांकि टाटा समूह में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, परंतु उनके वारिस की चर्चा में यह बात प्रमुखता से आती है कि वे अपनी संपत्ति को केवल पारिवारिक धरोहर के रूप में नहीं छोड़ना चाहते थे। टाटा ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने समाज के उत्थान के लिए अपने अधिकांश संसाधनों का उपयोग किया। उनके निधन के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उनकी संपत्ति और विरासत को कौन आगे बढ़ाएगा।

रतन टाटा का जीवन प्रेरणा, सादगी और मानवता का प्रतीक था। उनके द्वारा बनाई गई विरासत और उनके योगदानों को आने वाली पीढ़ियाँ भी याद रखेंगी।


क्यों तन्हा रहे रतन टाटा?

रतन टाटा का निजी जीवन हमेशा से एक चर्चा का विषय रहा है। उन्होंने कभी शादी नहीं की और आजीवन अकेले रहे। इसके पीछे की वजह उनकी पूर्व प्रेमिका सिमी गरेवाल ने साझा की थी। उनके अनुसार, रतन टाटा बेहद सच्चे और संवेदनशील व्यक्ति थे, लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने शादी न करने का निर्णय लिया। हालांकि, उनका जीवन उन लोगों के लिए एक प्रेरणा था, जिन्होंने अकेलेपन में भी अपने कार्यों से पूरी दुनिया को प्रभावित किया।


रतन टाटा की अंतिम विदाई ने यह साबित कर दिया कि वे सिर्फ एक सफल उद्योगपति नहीं थे, बल्कि वे एक सच्चे मानवतावादी भी थे, जिन्होंने अपनी मेहनत, निष्ठा और सेवा से करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनकी दयालुता, नेतृत्व और परोपकारी दृष्टिकोण हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। रतन टाटा अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी, जो भारत और दुनिया के लोगों को प्रेरित करती रहेगी। भारत ने सचमुच अपना “रतन” खो दिया है, लेकिन उनके द्वारा स्थापित मूल्य और आदर्श हमेशा के लिए हमारी यादों में जीवित रहेंगे।

 

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