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Mithila: मिथिला नगरी से जुड़ी रोचक बातें
मिथिला नगरी भारत के पूर्वी भाग और नेपाल के दक्षिणी भाग में स्थित एक प्राचीन सांस्कृतिक क्षेत्र है। Mithila Nagari अपनी अनूठी कला, साहित्य और परंपराओं सहित अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, मिथिला को भगवान राम की पत्नी सीता ( माता जानकी) का जन्मस्थान माना जाता है। वेद जैसे प्राचीन ग्रंथों और रामायण जैसे महाकाव्यों में इस नगरी को एक प्रमुख साम्राज्य के रूप में उल्लेख किया गया है और यह आज अपने Makhana और Madhubani Paintings के लिए प्रसिद्ध है।
यह प्राचीन भारत में एक राज्य था। यह वर्तमान में एक सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमे बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं। यहाँ की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। इसका उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। मिथिला के बारे में कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:
1. नेपाल तक फैला है मिथिला का भौगोलिक क्षेत्र
यह मुख्य रूप से भारत के बिहार के उत्तरी भाग में स्थित है, और नेपाल के दक्षिणपूर्वी तराई क्षेत्र तक फैला हुआ है। इसकी सीमा दक्षिण में गंगा नदी, पश्चिम में गंडकी नदी और पूर्व में महानंदा नदी से लगती है।
वृहद्विष्णुपुराण में मिथिला की सीमा (चौहद्दी) का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा गया है कि-
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुर्विंश व्यायामः परिकीर्त्तितः॥
गङ्गा प्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतम्वनम् ।
विस्तारः षोडशप्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन॥[20]
अर्थात् पूर्व में कोसी से आरंभ होकर पश्चिम में गंडकी तक 24 योजन तथा दक्षिण में गंगा नदी से आरंभ होकर उत्तर में हिमालय वन (तराई प्रदेश) तक 16 योजन मिथिला का विस्तार है।
2. राजा जनक की नगरी मिथिला का इतिहास
इस क्षेत्र का एक समृद्ध इतिहास है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। इसे हिंदू महाकाव्य रामायण में भगवान राम की पत्नी सीता का जन्मस्थान माना जाता है। यह क्षेत्र कई प्राचीन राज्यों का घर रहा है, जिसमें विदेह साम्राज्य भी शामिल है, जिस पर सीता के पिता राजा जनक का शासन था।
जनक और जानकी के कारण मिथिला पवित्रता का पर्याय है। मिथिला का नामकरण भी रोचक है-वशिष्ठ के शाप से राजा ‘निमि’ की मृत्यु हो गई। परन्तु पुनः ‘निमि’ के शरीर मंथन से ‘मिथि’ नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई जिसके नाम पर ‘मिथिला’ राज्य की स्थापना हुई। यहीं के राजा जनक भी थे। शत्रुओं को नष्ट करने वाली नगरी के रूप में भी मिथिला की पहचान है। यहाँ कई राजवंशों का शासन रहा।
आयुर्वेद संहिता में मिथिला राज्य का सर्वप्रथम वर्णन किया गया है। बाद में बौद्ध जातक, जैन, ब्राह्मण, पुराण, रामायण एवं महाभारत में विशेष रूप से चर्चा की गई है। इस राज्य की लम्बाई 24 योजन या 192 मील, कौशिकी नदी से गण्डकी नदी तक एवं चौर्ड़ाई 16 योजन या 128 मील गंगा
नदी से पर्वतराज हिमालय तक था।
मिथिला के अन्य नाम भी इस प्रकार हैं-नेमिकानन ज्ञानपीठ,स्वर्णलांग, शाम्भवी, विकल्मषा, रामानन्दकति, विश्वभामिनी, नित्यमंगला, विदेह, तीरभुक्त या तिरहुत है। बहुश्रुत कथानुसार राजा विदेह माधव अपने पुरोहित गौतम रहुगण के साथ सरस्वती तट से चलकर सदानीरा (गंडक) को पार कर आर्यों की एक शाखा का नेतृत्व करते हुए यहाँ आए और वैश्वानर अनल की सहायता से इस पंकिल एवं वनाच्छादित प्रदेश को वास योग्य बनाया जो बाद में ‘विदेघ’अथवा ‘विदह’ के नाम से विख्यात हुआ।
गुप्त के शासन काल में इसे ‘तीरभुक्ति’ कहा जाता था, जिसका अपभ्रंश ‘तिरहुत’ है। तीन बड़ी नदियों गंगा, गंडकी एवं कौशकी के तट पर अवस्थित होने के कारण इसे तीरभुक्ति कहा जाता था। मिथिला का विदेह राज्य के समय स्वतंत्र अस्तित्त्व था। लेकिन यह बाद में सदैव पराधीन होता रहा। लगभग 1400 वर्षों के बाद कर्णाट वंश के शासन काल में इसका भाग्योदय हुआ।
भारतीयता के विकास में मिथिला का विशेष योगदान रहा है। यह सदा से ही दर्शन, न्याय शिक्षा और अध्यात्म का केंद्र रहा है। यह बुद्ध एवं महावीर का कर्म क्षेत्र भी रहा है।
3. सीता की जन्म भूमि की अनूठी कला और संस्कृति:
मिथिला अपनी अनूठी कला के लिए प्रसिद्ध है जिसे मधुबनी या मिथिला पेंटिंग के नाम से जाना जाता है। इन चित्रों की विशेषता जटिल डिज़ाइन, जीवंत रंग और पौराणिक कथाओं, प्रकृति और दैनिक जीवन से प्रेरित विषय हैं। मिथिला अपनी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के लिए भी जाना जाता है, जिसमें मैथिली भाषा भी शामिल है, जिसमें कविता, लोक गीत और धार्मिक ग्रंथों की समृद्ध परंपरा है।
4. प्रभु श्री राम के ससुराल की समृद्ध परंपराएं:
यह परंपराओं और त्योहारों की एक समृद्ध श्रृंखला का घर है। इस क्षेत्र में मनाए जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहारों में छठ पूजा, सामा-चकेवा और मधुश्रावणी शामिल हैं।
5. पौराणिक नगरी की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था:
यहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि प्रधान है, कृषि लोगों का मुख्य व्यवसाय है। यह क्षेत्र अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता है, जो मखाना, चावल, गेहूं और अन्य फसलों की खेती के लिए उपयुक्त है।
6. आकर्षक पयर्टन स्थल:
यह कई पर्यटक आकर्षणों का घर है, जिनमें सीता की जन्मस्थली जनकपुर और उन्हें समर्पित जानकी मंदिर भी शामिल है। अन्य आकर्षणों में मधुबनी आर्ट गैलरी शामिल है, जो पारंपरिक मिथिला पेंटिंग और गंगा नदी के किनारे छठ पूजा घाटों को प्रदर्शित करती है।
कुल मिलाकर, मिथिला इतिहास, संस्कृति और परंपरा से समृद्ध क्षेत्र है और यह भारत और नेपाल में कला, साहित्य और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।
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मिथिला क्षेत्र के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू)
1. मिथिला कहाँ है?
मिथिला भारत के बिहार राज्य में फैला है और दक्षिणपूर्वी नेपाल के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ है। मिथिला के प्रमुख शहरों में दरभंगा, मधुबनी और जनकपुर शामिल हैं। मिथिला भारत के पूर्वी भाग और नेपाल के कुछ हिस्सों में स्थित एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। यह अपनी समृद्ध विरासत, जीवंत त्योहारों और कला, साहित्य और आध्यात्मिकता में योगदान के लिए जाना जाता है।
2. मिथिला किस लिए प्रसिद्ध है?
मिथिला अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें मिथिला पेंटिंग (मधुबनी कला), विदेह के प्राचीन साम्राज्य के साथ इसका संबंध और हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में इसका महत्वपूर्ण योगदान शामिल है। यह क्षेत्र अपने पारंपरिक त्योहारों और व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है।
4. मिथिला क्षेत्र के प्रमुख आकर्षण क्या हैं?
मिथिला के प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं:
– जनकपुर में जानकी मंदिर: एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल।
– दरभंगा में ब्रह्मपुर मंदिर: अपनी स्थापत्य सुंदरता के लिए जाना जाता है।
– मधुबनी पेंटिंग: इस क्षेत्र से उत्पन्न अद्वितीय कला रूप।
– सौराठ सभा: मैथिल ब्राह्मणों के लिए एक प्राचीन सभा स्थल।
5.मधुबनी पेंटिंग का क्या महत्व है?
मधुबनी पेंटिंग, जिसे मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है, मिथिला क्षेत्र में प्रचलित एक पारंपरिक कला है। इसकी विशेषता जटिल पैटर्न, जीवंत रंग और पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और प्रकृति से ली गई थीम हैं। इस कला रूप ने अपनी सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की है।
6. मिथिला में कौन सी भाषाएँ बोली जाती हैं?
मिथिला में बोली जाने वाली प्राथमिक भाषा मैथिली है। हिंदी और नेपाली भी व्यापक रूप से बोली जाती हैं, खासकर भारत-नेपाल सीमा के करीब के इलाकों में।
7. मिथिला में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहार कौन से हैं?
मिथिला के प्रमुख त्योहारों में शामिल हैं:
– छठ पूजा: Chatha Puja मिथिला की संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व प्रकृति के प्रति सम्मान, सूर्य देवता की आराधना और सामाजिक एकता का प्रतीक है। छठ पूजा के दौरान लोग अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करते हैं। यह पर्व आत्म-शुद्धि, संकल्प और समर्पण का प्रतीक है और इसे पूरे मिथिला क्षेत्र में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
- छठ पूजा चार दिनों तक चलता है, जो कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आता है। यह नहाय-खाय से शुरू होकर पारण के दिन समाप्त होता है।
- छठ पूजा में पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रती (जो उपवास रखते हैं) कठोर नियमों का पालन करते हैं, जिसमें साफ-सफाई, शुद्धता और सात्विकता का महत्व होता है।
- व्रती घर के साथ-साथ अपने मन, वचन और कर्म को भी शुद्ध रखते हैं।
– सामा चकेवा: सामा-चकेवा पर्व मिथिला की लोकसंस्कृति और पारंपरिक मूल्यों का प्रतीक है। यह पर्व न केवल भाई-बहन के रिश्ते की महत्ता को दर्शाता है, बल्कि समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित करता है। सामा-चकेवा के माध्यम से मिथिला की कला, संगीत, और परंपराओं का संरक्षण होता है और नई पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराने का अवसर मिलता है।
सामा-चकेवा का पर्व मिथिला की लोकसंस्कृति की जीवंतता और उसकी समृद्ध विरासत को प्रकट करता है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को सम्मानित करने और समाज में सामुदायिक भावना को प्रबल करने का एक अनूठा माध्यम है।
– दुर्गा पूजा: मिथिला में दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मिथिला की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत बनाए रखता है। इस पर्व के माध्यम से मिथिला की लोक कला, संगीत, और नृत्य का संरक्षण और संवर्धन होता है। दुर्गा पूजा के दौरान सामूहिक उत्सव और धार्मिक अनुष्ठान सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक एकता को प्रबल करते हैं। मिथिला में दुर्गा पूजा का पर्व देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का गुणगान करता है, जो लोगों को उनके जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा देता है। यह पर्व मिथिला की पहचान और उसकी सांस्कृतिक विशिष्टता का प्रतीक है।
- दुर्गा पूजा का पर्व मिथिला में भी शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों तक चलता है, जिसमें महालया से लेकर विजयादशमी तक विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
– मधुश्रावणी: मधुश्रावणी एक प्रसिद्ध पर्व है जो मुख्य रूप से बिहार और झारखंड के मैथिल ब्राह्मण समुदाय के बीच मनाया जाता है। यह पर्व नवविवाहिताओं के लिए विशेष महत्व रखता है और उनके वैवाहिक जीवन के शुभारंभ का प्रतीक है। मधुश्रावणी का पर्व सावन मास में आयोजित होता है, जो जुलाई-अगस्त के महीने में आता है।
- इस पर्व के दौरान नवविवाहिताएँ नाग देवता की पूजा करती हैं और उनसे अपने वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करती हैं। नागपंचमी के दिन विशेष रूप से नागों को दूध और चावल अर्पित किए जाते हैं।
8. मैं मिथिला कैसे पहुँच सकता हूँ?
मिथिला तक सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है। निकटतम प्रमुख हवाई अड्डा पटना, बिहार में है। ट्रेन सेवाएं मिथिला के प्रमुख शहरों को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ती हैं। नियमित बस और टैक्सी सेवाओं के साथ सड़क संपर्क भी अच्छी तरह से विकसित है।
9. मिथिला का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
मिथिला का वैदिक काल से ही समृद्ध ऐतिहासिक महत्व है। यह विदेह के प्राचीन साम्राज्य का केंद्र था और इसका उल्लेख विभिन्न हिंदू ग्रंथों में किया गया है। यह क्षेत्र भगवान राम की पत्नी सीता से भी जुड़ा हुआ है, जो इसे हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है।
10. मिथिला की प्रसिद्ध हस्तियाँ कौन-कौन हैं?
मिथिला ने कई प्रसिद्ध हस्तियों को जन्म दिया है, जिनमें शामिल हैं:
1. विद्यापति:
विद्यापति का जन्म 1352 ईस्वी में मिथिला के बिसफी गाँव (वर्तमान में बिहार, भारत) में हुआ था। वे मैथिली भाषा के एक महान कवि, लेखक और संत थे। उन्हें “मैथिली साहित्य के शेक्सपियर” के रूप में जाना जाता है। उनकी रचनाएँ प्रेम, भक्ति, और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती हैं। विद्यापति की रचनाएँ मैथिली साहित्य की धरोहर हैं। उनके गीत और कविताएँ प्रेम, भक्ति और सामाजिक चेतना का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करती हैं। उनकी रचनाओं में सरल भाषा, सुंदर छंद और गहरी भावनाएँ पाई जाती हैं।
विद्यापति को “अभिनव जयदेव” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जयदेव के जैसे ही प्रेम और भक्ति के सुंदर गीत लिखे। जयदेव की “गीतगोविंद” की तरह विद्यापति की “पदावली” भी प्रेम और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण है।
विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ हैं:
पदावली: जिसमें उन्होंने प्रेम और भक्ति के गीत लिखे।
कीर्तिलता: राजा कीर्ति सिंह के जीवन पर आधारित।
भुवनविलास: सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित।
विवाह पंचमी: जिसमें श्रीराम और सीता के विवाह का वर्णन है।
विद्यापति की भाषा मैथिली थी, लेकिन उन्होंने संस्कृत और अवहट्ट (पुरानी हिंदी) में भी लिखा। उनकी शैली सरल, सजीव और भावपूर्ण होती थी, जो पाठकों के मन को गहराई से छू जाती है।
विद्यापति ने अपने भक्ति गीतों के माध्यम से भगवान कृष्ण और शिव की भक्ति को लोकप्रिय बनाया। उनके भक्ति गीतों ने भक्तिमार्ग की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया और समाज में धार्मिक और नैतिक जागरूकता फैलाई।
विद्यापति का प्रभाव आधुनिक मैथिली, हिंदी और बंगाली साहित्य पर गहरा है। उनकी कविताओं और गीतों ने न केवल साहित्यिक जगत को समृद्ध किया बल्कि नई पीढ़ी के कवियों और लेखकों को भी प्रेरित किया।
विद्यापति के सम्मान में हर साल विद्यापति पर्व मनाया जाता है, जिसमें उनकी रचनाओं का पाठ, सांस्कृतिक कार्यक्रम और साहित्यिक गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं। यह पर्व मिथिला क्षेत्र में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
2. बाबा नागार्जुन:
बाबा नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। उन्हें वैद्यनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी और मैथिली साहित्य के प्रसिद्ध कवि, लेखक और समाज सुधारक थे। वे अपनी जनवादी रचनाओं और सामाजिक जागरूकता के लिए जाने जाते हैं।
बाबा नागार्जुन की रचनाएँ जनवादी साहित्य का अद्वितीय उदाहरण हैं। उनकी कविताएँ और उपन्यास समाज के आम आदमी की आवाज को व्यक्त करते हैं और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर प्रखरता से प्रकाश डालते हैं।
बाबा नागार्जुन की भाषा सरल, स्पष्ट और सीधे आम आदमी से संवाद करने वाली थी। उनकी शैली में व्यंग्य, हास्य और तीव्र सामाजिक आलोचना की झलक मिलती है, जो पाठकों के मन में गहरी छाप छोड़ती है।
बाबा नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ हैं:
– युगधारा: कविता संग्रह
– रतिनाथ की चाची: उपन्यास
– बलचनमा: उपन्यास
– बाबा बटेसरनाथ: उपन्यास
– सतरंगे पंखों वाली: बाल साहित्य
– खिचड़ी विप्लव देखा हमने: काव्य संग्रह।
बाबा नागार्जुन ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, और आर्थिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी रचनाएँ समाज को जागरूक करने और परिवर्तन लाने की प्रेरणा देती हैं।
हालांकि बाबा नागार्जुन सीधे तौर पर भक्ति आंदोलन से जुड़े नहीं थे, उनकी कविताओं में समाज के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना झलकती है। वे जन-जन की भक्ति और समर्पण के प्रतीक थे। बाबा नागार्जुन का प्रभाव आधुनिक हिंदी और मैथिली साहित्य पर गहरा है। उनकी रचनाएँ नई पीढ़ी के लेखकों और कवियों को सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।
बाबा नागार्जुन के सम्मान में साहित्यिक गोष्ठियाँ, कविता पाठ और संगोष्ठियों का आयोजन होता है। उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें उनकी रचनाओं का पाठ और चर्चा होती है।